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सितारगंज:—बैगुल डाम के हस्तान्तरण के बाद निष्प्रयोज्य भूमि पर बसे परिवारों को मालिकाना हक देने की मांग

सितारगंज। बैगुल जलाशय के किनारे बसे ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री को भेजे ज्ञापन में डाम के हस्तान्तरण के उपरांत निष्प्रयोज्य भूमि पर बसे परिवारों को मालिकाना हक देने की मांग की हैं। उप जिलाधिकारी तुषार सैनी के माध्यम से भेजे गये ज्ञापन में कहा गया है कि ग्राम गोठा, लौका, नकहा, सिन्धी डेरा, गुरुनानाक नगरी, बनकुइयां आदि की भूमि जो बैगुल जलाशय के हस्तान्तरण के उपरांत निष्प्रयोज्य हैं उसे उस पर बसे परिवारों को मालिकाना हक दिया जाये। उपरोक्त गांवों में अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति के भूमिहीन कृषक परिवार पिछले 62-64 वर्षो से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इनको सरकार द्वारा समस्त नागरिक सुविधाएं जैसे-वोटर कार्ड, राशन कार्ड, सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। सैकड़ों की तादात में पक्के मकान बनाकर हजारों परिवार इस क्षेत्र में निरन्तर निवास कर रहे है। कहा गया कि बैगुल जलाशय निर्माण हेतु सरकार द्वारा कुछ भूमि वन तथा कुछ भूमि राजस्व से अधिग्रहित की गयी थी। किन्तु इन ग्रामीणों को कही अन्यत्र न बसाये जाने के कारण यह लोग इसी स्थान पर जलाशय की निष्प्रयोज्य भूमि पर काबिज काश्त रहते अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इन गांवों को ग्राम सभा का दर्जा भी प्राप्त हैं। तथा निरन्तर यहां से जनप्रतिनिधि जैसे ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य व जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित होकर सरकार को सहयोग प्रदान करते रहे हैंं। क्षेत्र के तमाम लोग सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानो में निरन्तर सेवारत भी हैं। यह भूमि 1958 से 1963 तक राजस्व अभिलेखों में बंजर, नदी, गूल, दिगर, दरख़्तान के रूप में दर्ज रही हैं। उसके उपरांत 1964 से 1975 तक लगातार सिंचाई विभाग के स्वामित्व एवं प्रबंधन में रही। 29 मार्च 1975 को तराई क्षेत्र के समस्त जलाशयों की फालतू जमीन के संबंध में वन विभाग का एक अर्ध शासकीय पत्र संख्या 1112/14 सी वन विभाग जारी हुआ। जिसके आधार पर प्रार्थीगणों के कब्जे काश्त कि यह जमीन वन विभाग को सौंपने की कार्यवाही प्रारंभ हुई। किंतु यह प्रक्रिया अमल में पूर्ण रूप से आई ही नहीं थी कि इस आदेश के ठीक 6 महीने बाद यानि 1 नवंबर 1975 को उत्तर प्रदेश वन विभाग का एक शासनादेश जारी हुआ, जिसके अनुसार तराई क्षेत्र के समस्त सातों जलाशयों पर बसे परिवारों सहित वन भूमि पर दिनांक 8 नवंबर 1973 से पूर्व बसे परिवार भूनियमितीकरण होने तथा पट्टा प्राप्त करने के अधिकारी हो गये। कहा गया कि इसी शासनादेश के कारण ही प्रार्थीगणों को उपरोक्त भूमि से हटाने का निर्णय स्वतः ही समाप्त हो गया। क्योंकि प्रार्थीगण परिवार वैधानिक रूप से अपने कब्जे काश्त की भूमि पर मालिकाना हक पाने के पात्र हो गये थे। वन विभाग 1975 से आज तक नियमितीकरण की प्रक्रिया को यह कहकर टालता रहा है कि यह भूमि अभी तक सिंचाई विभाग से हस्तांतरित होकर वन विभाग को प्राप्त नहीं हुई हैं जबकि सिंचाई विभाग द्वारा 25 जुलाई 1976 में ही उपरोक्त जमीन वन विभाग को सभी विवरणों के साथ हस्तांतरित कर दी थी। मांग की गई कि जनहित में जलाशयों के क्षेत्र में बसे परिवारों की भूमि नियमितीकरण की समस्या का समाधान किए जाने हेतु संपूर्ण प्रकरणों के हर पहलू पर संबंधित विभागों से व्यापक जांच आख्या मंगा कर शासन स्तर पर उचित नीति-निर्धारण कर प्रार्थीगण परिवारों को भूमि नियमितीकरण कराने हेतु उचित कार्यवाही की जाये। ज्ञापन की प्रतियां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, राज्यपाल, मुख्य सचिव आदि को भी भेजी गई हैं। ज्ञापन सौंपने वालों में पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य गोठा योगेन्द्र कुमार यादव, श्याम सुंदर, देवसरन, लतीफ शाह, राधेश्याम, रामअवध, मुकेश कुमार, शम्भू प्रसाद, मो.हनीफ, शिवदान, अनूप सिंह, हरनाम सिंह, महेन्दर सिंह, मिलखराज, ​हीरासिंह, रामलाल, राजबहादुर, नंद किशोर, लक्ष्मी नारायण, हरीशंकर, छेदीलाल आदि शामिल थे।

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